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पंचमेरु-पूजा (कविवर द्यानतराय)
गीता छन्द तीर्थंकरों के न्हवन जल तैं भये तीरथ शर्मदा, तातै प्रदच्छन देत सुर-गन पंच मेरुन की सदा। दो जलधि ढाई-द्वीप में सब गनत-मूल विराजहीं,
पूजौं असी जिनधाम-प्रतिमा होहि सुख, दुख भाजहीं ॥ ॐ ह्रीं पञ्चमेरुसम्बन्धिजिनचैत्यालयस्थजिनप्रतिमासमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट्। (स्थापनम्) ॐ ह्रीं पञ्चमेरुसम्बन्धिजिनचैत्यालयस्थजिनप्रतिमासमूह ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः।(आह्वाननम्) ॐ ह्रीं पञ्चमेरुसम्बन्धिजिनचैत्यालयस्थजिनप्रतिमासमूह! अत्र मम सन्निहितो भव भव
वषट्। (सन्निधिकरणम्)
चौपाई आंचलीबद्ध सीतल-मिष्टसवास मिलाय, जल सौं पजौं श्रीजिनराय ।
महासुख होय देखे नाथ परम सुख होय ॥ पाँचों मेरु असी जिनधाम, सब प्रतिमा जी को करों प्रणाम ।
महासुख होय, देखे नाथ परम सुख होय ॥ ॐ ह्रीं सुदर्शन विजय अचल मन्दर विद्युन्मालि पञ्चमेरुसम्बन्धिजिन चैत्यालयस्थ-जिनबिम्बेभ्यो जलं
___ निर्वपामीति स्वाहा।
जल केशर करपूर मिलाय, गंधसौं पूजौं श्रीजिनराय ।
महासुख होय, देखे नाथ परम सुख होय ॥ पाँचों मेरु असी जिनधाम, सब प्रतिमा जी को करों प्रणाम ।
महासुख होय, देखे नाथ परम सुख होय ॥ ॐ ह्रीं पञ्चमेरुसम्बन्धि जिनचैत्यालयस्थ जिनबिम्बेभ्यश्चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा ।
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