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जिन-पूजा रे परमारथसूं, जिन आगे नृत्य महोत्सव ठाणे।
गावत गीत बजावत ढोल, मृदंगके नाद सुधांग बखाणे।। संग प्रतिष्ठा रचे जल-जातरा, सद्-गुरु को साहमो कर आणे। 'ज्ञान' कहे जिन मार्ग-प्रभावन, भाग्य-विशेषसु जानहिं जाणे।। ॐ ह्रीं मार्गप्रभावना भावनायै नम: अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।15।
गौरव भाव धरो मन से मुनि-पुंगव को नित वत्सल कीजे। शीलके धारक भव्य के तारक, तासु निरंतर स्नेह धरीजे।। धेनु यथा निजबालक को, अपने जिय छो ड़ि न और पतीजे। 'ज्ञान' कहे भवि लोक सुनो, जिन वत्सल भाव धरे अघ छीजे।। ॐ ह्रीं प्रवचन-वाल्सल्य भावनायै नमः अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।16।
जाप्य मंत्र- ॐ ह्रीं दर्शनविशुद्ध्यै नमः, ॐ ह्रीं विनयसंपन्नतायै नमः, ॐ ह्रीं शीलव्रताय नमः, ॐ
ह्रीं अभीक्ष्णज्ञानोपयोगाय नमः, ॐ ह्रीं संवेगाय नमः, ॐ ह्रीं शक्तितस्त्यागाय नमः, ॐ ह्रीं शक्तितस्तपसे नमः, ॐ ह्रीं साधुसमाध्यै नमः, ॐ ह्रीं वैयावृत्त्यकरणाय नमः, ॐ ह्रीं अर्हद्भक्त्यै नमः,
ॐ ह्रीं आचार्यभक्त्यै नमः, ॐ ह्रीं बहुश्रुतभक्त्यै नमः, ॐ ह्रीं प्रवचनभक्त्यै नमः, ॐ ह्रीं आवश्यकापरिहाण्यै नमः, ॐ ह्रीं मार्गप्रभावनायै नमः, ॐ ह्रीं प्रवचनवात्सल्यै नमः।16।
जयमाला
दोहा
षोडश कारण गुण करै, हरै चतुरगति-वास । पाप पुण्य सब नाश के, ज्ञान-भानु परकाश ॥
चौपाई दरश-विशुद्धि धरे जो कोई, ताकौ आवागमन न होई। विनय-महाधारै जो प्राणी, शिववनिता की सखी बखानी ॥
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