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भव-भोगों से होकर विरक्त तुमने विवाह से मुख मोड़ा। बस बाल बह्मचारी रहकर कंदर्प-शत्रु का मद तोड़ा। जब तीस वर्ष के युवा हुए वैराग्य भाव जागा मन में। लौकान्तिक आये धन्य-धन्य दीक्षा ली ज्ञातखण्ड मन में। नृपराज बकुल के गृह जाकर पारणा किया गौ दुग्ध लिया। देवों ने पंचाश्चर्य किये जन-जन ने जय-जयकार किया।। उज्जयनी की श्मशान भूमि में जाकर तुमने ध्यान किया। सात्यिकी-तनय भवरुद्र कुपित हो गया महा व्यवधान किया।। उपसर्ग रुद्र ने किया घोर तुम आत्म-ध्यान में रहे अटल। नतमस्तक रुद्र हुआ तब ही उपसर्ग जयी तुम हुए सफल।। कौशाम्बी में उस सती चन्दना दासी का उद्धार किया। हो गया अभिग्रह पूर्ण चन्दना के कर से आहार लिया।। नभ से पुष्पों की वर्षा लख नृप शतानीक पुलकित हुये।
वैशाली-नृप चेतक विछुड़ी चन्दना सुता पा हर्षाये।।
संगमक देव तमसे हारा जिसने भीषण उपसर्ग किये। तुम आत्म-ध्यान में रहे अटल अन्तर में समता भाव लिये।।
जितनी भी बाधाएँ आई उन सब पर तुमने जय पाई। द्वादश वर्षों की मौन-तपस्या और साधना फल लाई।। मोह-अरि-जयी श्रेणी चढ़कर तुम शुक्लध्यान में लीन हुए। ऋजुकूला के तट पर पाया कैवल्य पूर्ण स्वाधीन हुए।। अपने स्वरूप में मग्न हुए लेकर स्वभाव का अवलम्बन। घातिया-कर्म चारों नाशे प्रगटाया केवलज्ञान स्व-धन।।
अन्तरयामी सर्वज्ञ हुए तुम वीतराग अरहन्त हुए। सुर-नर-मुनि-इन्द्रादिक-वन्दित त्रैलोक्यनाथ भगवन्त हुए।। विपुलाचल पर दिव्य-ध्वनि के द्वारा जग को उपदेश दिया। जग की असारता बलताकर फिर मोक्षमार्ग सन्देश दिया।। ग्यारह गणधर में हे स्वामी! श्री गौतम गणधर प्रमुख हए। आर्यिक मुख्य चंदना सती श्रोता श्रेणिक नृप प्रमुख हुए।।
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