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कर्मों की लीला में पड़कर भव भार बढ़ाया है अब तक। संसार द्वन्द्व के फन्दे से निज धूम्र उड़ाया है अब तक। भावों की धूप चढ़ाकर मैं वसु कर्म जलाने आया हूँ।। हे महावीर स्वामी! निज हित मैं पूजन करने आया हूँ | | 7 | ऊँ ह्रीं श्रीमहावीरजिनेन्द्राय अष्टकर्म - दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
संयोगी भावों से भव ज्वाला में जलता आया अब तक शुभ के फल में अनूकूल संयोगों को पा इतराया अब तक भावों का फल ले निज स्वभाव का शिवफल पाने आया हूँ।।
हे महावीर स्वामी! निज हित मैं पूजन करने आया हूँ।। 8 ।। ऊँ ह्रीं श्रीमहावीरजिनेन्द्राय मोक्षफल प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।
अपने स्वभाव साधन का विश्वास नहीं आया अब तक। सिद्धत्व स्वयं से आता है आभास नहीं पाया अब तक ॥। भावों का अर्घ चढ़ाकर मैं अनुपम पद पाने आया हूँ।।
हे महावीर स्वामी! निज हित मैं पूजन करने आया हूँ|| 9॥
ऊँ ह्रीं श्रीमहावीरजिनेन्द्राय अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
पंचकल्याणक धन्य तुम महावीर भगवान् धन्य तुम वर्द्धमान भगवान्।
शुभ आषाढ़ शुक्ला षष्ठी को हुआ गर्भ-कल्याण।।
माँ त्रिशला के उर में आये भव्य जनों के प्राण ।। धन्य तुम महावीर भगवान् धन्य तुम वर्द्धमान भगवान्।
ॐ ह्रीं आषाढ़ शुक्ला - षष्टिदिने गर्भकमंगल-मंडिताय श्रीमहावीरजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।]।
चैत्र शुक्ल त्रयोदशी का दिवस पवित्र महान।
हुए अवतरित भारत-भू पर जग को दुखमय जान ।। धन्य तुम महावीर भगवान् धन्य तुम वर्द्धमान भगवान्।
ऊँ ह्रीं चैतशुक्ला-त्रयोदशीदिने जन्मकल्याण-प्राप्ताय श्रमहावीरजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।2।
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