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रहे अलिप्त कमल जल में ज्यों अंतर में मुख मोड़ लिया।।
स्वयं ज्ञान तुम स्वयं बोध करते हो निजपद में विश्राम। हे सन्मति! प्रभु महावीर! है चरणों में शतबार प्रणाम।।
नाथ आपने पादमूल में भविजन पाते सम्यक् ज्ञान। दृष्टि विमल होती है मुनिजन तपकर पाते मोक्ष-निधान।।
कल्पवृक्ष सम पा जाते हैं जन्म-मृत्यु से पूर्ण विराम। हे सन्मति! प्रभु महावीर! है चरणों में शतबार प्रणाम।। नन्दन कानन यह सुन्दरवन बहती मंदसुगन्ध बयार। चम्पा जुही गुलाब चमेली, फूले फूल अनेक प्रकार।। इसी अहिंसा स्थल पर धारे, ध्यान अटल निश्चल निष्काम। हे सन्मति! प्रभु महावीर! है चरणों में शतबार प्रणाम।। नाथ आपके वचनामृत से दर हुआ जग का अज्ञान। कर्मबली को जीत आपने पाया अनुपम पद निर्वाण।। चिदानन्द चैतन्य सूर्य हे ज्ञान स्वभावी आत्माराम। हे सन्मति! प्रभु महावीर! है चरणों में शतबार प्रणाम।। निर्मल रूप आपका लखकर पाऊ निज स्वरूप का ज्ञान। जब तक मुक्ति न प्राप्त हमें हो रहे सदा प्रभुपद में ध्यान।।
यह आत्मा हो लीन स्वयं में शुद्ध रहे मेरे परिणाम। हे सन्मति! प्रभु महावीर! है चरणों में शतबार प्रणाम।। ऊँ ह्रीं श्रीवर्धमानजिनेन्द्राय जयमाला-पूर्णायँ निर्वपामीति स्वाहा।
जो तमको लख निज को जाने नित्य धरे आत्मा का ध्यान। वह भव-भव का सब दुख मेटे, पाए अनुपम पद निर्वाण।। नेत्र सफल हो प्रभुदर्शन से, रचना से प्रभु का गुणगान। श्री के कर्मबंध कट जावें, हृदय बने प्रभु भक्ति महान।।
॥ इत्याशीर्वादः पुष्पांजलि क्षिपामि ॥
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