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________________ ये देख ग्वाल मनमें अधीर, मम गृह को त्यागो नाहि वीर। तेरे दर्शन बिन तजूं प्राण, सुनि टेर मेरी किरपा निधान।6। कीने रथ में प्रभु विराजमान, रथ हुआ अचल गिरिके समान। तब तरह तरह के किये जोर, बहुतक रथ गाड़ी दिये तोड़ा। निशिमांहि स्वप्न सचिवहिं दिखात, रथ चलै ग्वाल का लागत हाथ। भारहिं झट चरण दियो बनाय संतोष दियो ग्वालहिं कराय।8। करि जय-जय प्रभु से करी टेर, रथ चल्यो फेर लागी न देर। बहु निरत करत बाजे बजाई, स्थापन कीने तहँ भवन जाई।9। इक दिन मंत्री को लगा दोष, धरि तोप कही नृप खाय रोष। तुमको जब ध्याया वहां वीर, गोला से झट बच गया वजीर।10। मंत्री नृप चांदन गांव आय, दर्शन करि पूजा विधि बनाय। करि तीन शिखर मंदिर रचाय, कंचन-लशा दीने धराय।।11॥ __यह हुक्म कियो जयपुर नरेश, सालाना मेला हो हमेश। अब जुड़न लगे बहु नर उ नार, तिथि चैत सुदी पूनों मंझार।12। मीना गूजर आवें, विचित्र, सब वरण जुड़े करि मन पवित्र। बहु निरत करत गावे सुहाय, कोई घृतदीपक रह्यो चढ़ाय।13। कोइ जय-जय शब्द करै गंभीर, जय-जय जय हे श्री महावीर। जैनी जन पूजा रचत आन, कोइ छत्र चंवर के करत दान।14। जिसकी जो मन इच्छा करंत, मनवांछित फल पावै तुरंत। जो करै वंदना एक वार, सुख पुत्र संपदा हो अपार।15। जो तुम चरणों में रखै प्रीत, ताको जग में को सकै जीत। है शुद्ध यहां का पवन नीर, जहां अति विचित्र सरिता गंभीर।16। __ पूरनमल पूजा रची सार, हो भूल लेउ सज्जन सुधार। मेरा है शमशाबाद ग्राम, त्रयकाल करूँ प्रभु को प्रणाम।17। 656
SR No.009243
Book TitleChovis Bhagwan Ki Pujaye Evam Anya Pujaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages798
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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