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टीले के अन्दर विराजमान अवस्था का अर्घ्य
टीले के अन्दर आप सोहें पद्मासन। जहंा चतुरनिकाई देव आवें जिन-शासन।। निज पूजन करत तुम्हार कर में ले झारी। हम हूँ वसु द्रव्य बनाय पूजें भरि थारी।
चांदनपुर के महावीर, तोरी छवि प्यारी।
प्रभु भव-आताप निवार, तुम पद बलिहारी।। ऊँ ह्री श्रीमहावीरजिनेन्द्रय टीले के अंदर विराजमान अवस्थायै अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।
पंचकल्याणक कुंडलपुर नगर मंझार त्रिशला-उर आयो। सुदि छठी आषाढ़ सुर आई रतन जु बरसायो।।
चांदनपुर के महावीर, तोरी छवि प्यारी।
प्रभु भव-आताप निवार, तुम पद बलिहारी।। ॐ ह्रीं आषाढ़सुदी-षष्टिदिने गर्भमंगल-मंडिताय श्रीमहावीरजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।।।
जनमत अनहद भई घोर आय चतुरनिकाई। तेरस शुक्ला की चैत्र गिरि पर ले जाई।।
चांदनपुर के महावीर, तोरी छवि प्यारी।
प्रभु भव-आताप निवार, तुम पद बलिहारी।। ऊँ ह्रीं चैतसुदी-त्रयोदशीदिने जन्ममंगल-मंडिताय श्रीमहावीरजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।2।
कृष्णा मंगसिर दश जान लौकांतिक आये। करि केशलोंच तत्काल झट वनको धाये।।
चांदनपुर के महावीर, तोरी छवि प्यारी।
प्रभु भव-आताप निवार, तुम पद बलिहारी।। ऊँ ह्रीं मंगसिरवदी-दशमीदिने तपोमंगल-मंडिताय श्रीमहावीरजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।3।
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