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दश विधि ले धूप बनाय, तामें गंध मिला। तुम सन्मुख खेऊँ आयआठों कर्म जला।।
चांदनपुर के महावीर, तोरी छवि प्यारी।
प्रभु भव-आताप निवार, तुम पद बलिहारी।। ॐ ह्रीं श्रीमहावीरस्वामिने अष्टकर्म-दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।7।
पिस्ता किसमिस बादाम श्रीफल लौंग सजा।
श्री वर्धमान-पद राख पाऊ मोक्षपदा।। चांदनपुर के महावीर, तोरी छवि प्यारी।
प्रभु भव-आताप निवार, तुम पद बलिहारी।। ऊँ ह्रीं श्रीमहावीरस्वामिने मोक्षफल-प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।8।
जल गंध सु अक्षत पुष्प चरुवर जोर करौं। ले दीप धूप फल मेलि आगे अर्घ करौं। चांदनपुर के महावीर, तोरी छवि प्यारी।
प्रभु भव-आताप निवार, तुम पद बलिहारी।। ॐ ह्रीं श्रीमहावीरस्वामिने अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।9।
टोंक के चरणों का अर्घ्य जहां कामधेनु नित आय दुग्ध जु बरसावे। तुम चरननि दरशन होत आकुलता जावे।। जहाँ छतरी बनी विशाल तहाँ अतिशय भारी। हम पूजत मन-वच-काय तज संशय सारी।।
चांदनपुर के महावीर, तोरी छवि प्यारी।
प्रभु भव-आताप निवार, तुम पद बलिहारी।। ऊँ ह्रीं टोंकस्थित-श्रीमहावीर-चरणाभ्याम् अयं निर्वपामीति स्वाहा।
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