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श्रीमहावीर जिन-पूजा (पावागिरि, ऊन) ( रचयिता - पं (0) बाबूलाल फणीश)
भाव-भरी आराधन करने, सिद्धभूमि पर आया हूँ।
श्री स्वर्णभद्रादि चार मुनियों को, शीश झुकाने आया हूँ। श्री शान्ति कुन्थु अरनाथ प्रभु का आह्वानन कर हर्षाया हूँ। श्री महावीर के चरणकमल को मैं वंदन करने आया हूँ।
नदी चेलना के तट पर शोभित सिद्धक्षेत्र महान है। महावीर की अतिशय प्रतिमा शोभित पावागिरि महान है ।।
ऊँ ह्रीं श्रीपावागिरि-सिद्धक्षेत्रतः सिद्धपदप्राप्ताः स्वर्णभद्रादि- चतुर-मुनिश्वरा एवं शान्ति- कुन्थु-अरमहावीरजिनेन्द्रा अत्र अवतरत अवतरत संवौषट्। (इति आह्वाननम्)
ऊँ ह्रीं श्रीपावागिरि-सिद्धक्षेत्रतः सिद्धपदप्राप्ताः स्वर्णभद्रादि- चतुर-मुनिश्वरा एवं शान्ति- कुन्थु-अरमहावीरजिनेन्द्रा अत्र तिष्ठत तिष्ठत ठः ठः। (स्थापनम् )
ऊँ ह्रीं श्रीपावागिरि-सिद्धक्षेत्रतः सिद्धपदप्राप्ताः स्वर्णभद्रादि- चतुर-मुनिश्वरेभ्यः एवं शान्ति- कुन्थु-अरमहावीरजिनेन्द्रा अत्र मम सन्निहिता भवत भवत वषट्। (सन्निधिकरणम्)
मैं अनादि से प्यासा हूँ, पर तृष्णा मेरी न बुझ पाई। जन्म-जन्म में पिया नीर पर रंच तृषा न मिट पाई।। भक्ति-भाव से सरित चेलना-नीर चढ़ाने आया हूँ।
श्री शान्ति कुन्थु अर महावीर चरण में शीश झुकाने आया हूँ।।1।
ऊँ ह्रीं श्रीपावागिरि-सिद्धक्षेत्रतः सिद्धपदप्राप्ताः स्वर्णभद्रादि- चतुर-मुनिश्वरेभ्यः एवं शान्ति-कुन्थु-अरमहावीरजिनेन्द्रेभ्यो जन्मजरामृत्यु-विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
अति दीर्घ संसार भ्रमणकर जन्म-मरण कर भटक रहा । अब तक न पाई शीतलता नश्वर चंदन ले अटक रहा। सद्दर्शन-ज्ञान-चरण आश्रय ले शीतलता पाने आया।
श्री शान्ति कुन्थु अर महावीर - चरण चंदन अर्चन आया।2।।
ऊँ ह्रीं श्रीपावागिरि-सिद्धक्षेत्रतः सिद्धपदप्राप्ताः स्वर्णभद्रादि- चतुर - मुनिश्वरेभ्यः एवं शान्ति- कुन्थु-अर
महावीर जिनेन्द्रेभ्या संसारताप - विनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।
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