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किन्तु मुँह माँगा मिलेगा मुझको ये विश्वास है। क्योंकि लौटाना न इस दरबार का दस्तूर है।
प्रार्थना है कर्म-बंधन से छुड़ाने के लिए। भेंट मैं कुछ भी नहीं लाया चढ़ाने के लिये।४। हो न जब तक माँग पूरी नित्य सेवक आयेगा। आपके पद-कंज में पुष्पेन्दु शीश झुकायेगा। है प्रयोजन आपको यद्यपि न भक्ति से मेरी। किन्तु फिर भी नाथ मेरा तो भला हो जायेगा।
आपका क्या जायेगा बिगडी बनाने के लिए।
भेंट मैं कुछ भी नहीं लाया चढ़ाने के लिये।५। ॐ ह्रीं श्री पार्शवनाथ जिनेन्द्राय जयमाला-पूर्णायँ निर्वपामीति स्वाहा।
॥ इत्याशीर्वादः पुष्पांजलि क्षिपामि ॥
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