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श्री पार्श्वनाथ पूजन-2 (रचयिता - पुष्पेन्दु) हे पाश्वनाथ ! हे अश्वसेन-सुत, करुणासागर तीर्थंकर। हे सिद्धशिला के अधिनायक, हे ज्ञान-उजागर तीर्थंकर।।
हमने भावुकता में भरकर, तुमको हे नाथ पुकारा है। प्रभुवर ! गाथा की गंगा से, तुमने कितनों को तारा है।। हम द्वार तुम्हारे आये हैं, करुणा कर नेक निहारो तो।
मेरे उर के सिंहासन पर, पग धारो नाथ ! पधारो तो। ॐ ह्रीं श्रीपाश्वनाथ जिनेन्द्र ! अत्र अवरत अवतर संवौषट् (इति आह्वाननम्) ।
ॐ ह्रीं श्रीपार्शवनाथ जिनेन्द्र ! अत्र तिष्ठत तिष्ठत ठः ठः। (स्थापनम्)। ॐ ह्रीं श्रीपाश्वनाथ जिनेन्द्र ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्। (सन्निधिकरणम्)
मैं लाया निर्मल जलधारा, मेरा अंतर निर्मल कर दो। मेरे अंतर को हे भगवन्, शुचि-सरल भावना से भर दो।। मेरे इस आकुल-अंतर को, दो शीतल सुखमय शांति प्रभो।
अपनी पावन अनुकम्पा से, हर लो मेरी भव-भ्रांति प्रभो। ॐ ह्रीं श्री पार्शवनाथजिनेन्द्राय जन्म-जरा-मृत्यु-विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
प्रभु ! पास तुम्हारे आया हूँ, भव-भव संताप सताया हूँ। तव पद-चंदन के हेतु प्रभो ! मलयागिरि-चंदन लाया हूँ।। अपने पुनीत चरणाम्बुज की, हमको कुछ रेणु प्रदान करो।
हे संकटमोचन तीर्थंकर ! मेरे मन के संताप हरो।। ॐ ह्रीं श्रीपाश्वनाथ जिनेन्द्राय संसारतार-विनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा॥
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