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भवतनभोग असारा, लख त्याग्यो धीर शुद्ध तप धारा।
फागुनवदि इग्यारा, मैं पूजों पाद अष्ट-परकारा।। ऊँ ह्रीं फाल्गुनकृष्णा-एकादश्यां निःक्रमणमहोत्सव-मंडिताय
श्रीश्रेयांसनाथजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।।
केवलज्ञान सु जानन, माघबदी पूर्णतित्थको देवा। चतुरानन भवभानन, वंदौं ध्यावौं करों सुपद सेवा।। ऊँ ह्रीं माघकृष्णा-अमावस्यायां ज्ञानमंगल-मंडिताय श्रीश्रेयांसनाथजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।4।
गिरि समेदतें पायो, शिवथल तिथि पूर्णमासि सावन को। कुलिशायुध गुनगायो, मैं पूजों आप निकट आवन को।। ऊँ ह्रीं श्रावणशुक्ला-पूर्णिमायां मोक्षमंगल-मंडिताय श्रीश्रेयांसनाथजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।
जयमाला
छन्द लोल तरंग शोभित तुंग शरीर सु जानों, चाप असी शुभलक्षन मानो। कंचनवर्ण अनूपम सोहै, देखत रूप सुरासुर मोहै।1।
छन्द पद्धड़ी जय-जय श्रेयांस जिन गुणगरिष्ठ, तुम पदजुग दायक इष्टमिष्टा जय शिष्ट शिरोमणि जगतपाल, जय भवि-सरोजगन प्रात काल।2।
जय पंचमहाव्रत-गजसवार, लै त्यागभाव दलबल सु लार। जय धीरजको दलपति बनाय, सत्ता छितिमहँ रनको मचाय।3। धरि रतन तीन तिहुँशक्ति हाथ, दश-धरम-कवच तपटोप माथ। जय शुकलध्यान कर खड्ग धार, ललकारे आठों अरि प्रचार।4।
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