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वंदन शत-शत बार है, पार्श्वनाथ के चरण-कमल में, वंदन शत-शत बार है। जिनका ज्ञानकल्याणक जजते, मिले सौख्य-भंडार है।। पार्श्वनाथ के चरण-कमल में, वंदन शत-शत बार है।
चैत्रवदी सुचतुर्थी प्रातः, देवदारु तरु के नीचे। कमठ किया उपसर्ग घोर तब, फणपति-पद्मावति पहुँचे।। जित-उपसर्ग केवली प्रभु का, समवसरण हितकार है।।
पार्श्वनाथ के चरण-कमल में, वंदन शत-शत बार है।।4।। ऊँ ह्रीं चैत्रकृष्णा-चतु,यां श्रीपार्श्वनाथजिन-केवलज्ञानकल्याणकाय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।
वंदन शत-शत बार है, पार्श्वनाथ के चरण-कमल में, वंदन शत-शत बार है। जिनका मोक्षकल्याणक जजते, मिले सौख्य-भंडार है।। पार्श्वनाथ के चरण-कमल में, वंदन शत-शत बार है।।
श्रावण शुक्त सप्तमी पारस, सम्मेदाचल पर तिष्ठे। मृत्युजीत शिवकांता पायी, लोकशिखर पर जा तिष्ठे।
सौ इन्द्रों ने पूजा करके, लिया आत्म-सुखसार है।।
पार्श्वनाथ के चरण-कमल में, वंदन शत-शत बार है।5।। ऊँ ह्रीं श्रावणशुक्ला-सप्तम्यां श्रीपार्श्वनाथजिन-मोक्षकल्याणकाय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा। दिव्यपुष्पांजलिः।
जयमाला (शंशु छंद- तर्ज-चंदन सा वदन....) जय पार्श्वप्रभो! करुणासिंधो! हम शरण तुम्हारी आये हैं। जय-जय प्रभु के श्री चरणों में, हम शीश झुकाने आये हैं।।टेक0॥
नाना महिपाल तपस्वी बन, पंचाग्नी-तप कर रहा जभी।
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