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श्रीपार्श्वनाथ जिन-पूजा (आर्यिका ज्ञानमती माता जी)
अथ स्थापना (तर्ज- गोमटेश जय गोमटेश मम हृदय विराजो....) __ पार्श्वनाथ जय पार्श्वनाथ, मम हृदय विराजोहम यही भावना भाते हैं, प्रतिक्षण ऐसी रुचि बनी रहे।
हो रसना में प्रभु नाममंत्र, पूजा में प्रीति घनी रहे।। हम यही भावना भाते हैं, प्रतिक्षण ऐसी रुचि बनी रहे।
हे पार्श्वनाथ आवो आवो, आह्वान आपका करते हैं। हम भक्ति आपकी कर-करके, सब दुख-संकट को हरते हैं।
प्रभु ऐसी शक्ति दे दीजे, गुण-कीर्तन में मति बनी रहे।।
हम यही भावना भाते हैं, प्रतिक्षण ऐसी रुचि बनी रहे। ऊँ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्र! अत्र अवतर अवतर संवौषट्। (इति आह्वाननम्)
ऊँ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्र! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः। (स्थापनम्) ऊँ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्र! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्। (सन्निधिकरणम्)
(अथ अष्टक) आवो हम सब करें अर्चना, पार्श्वनाथ भगवान् की। जिनकी भक्ति से प्रकटित हो, ज्योति आतम-ज्ञान की। ॥वंदे जिनवरम्-4।।
सुरगंगा का उज्ज्वल जल ले, प्रभु चरणों त्रयधार करूँ। पुनर्जन्म का त्रास दूर हो, इसीलिए प्रभु ध्यान धरूँ।।
भव-भव तृष्णा मिटाने वाली, पूजा जिन भगवान की।। जिनकी भक्ति से प्रकटित हो, ज्योति आतम-ज्ञान की॥ वंदे जिनवरम्-4।। ऊँ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्यु-विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
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