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इसी भावना से प्रेरित हो हे प्रभु! की है यह पूजन। तव प्रसाद से एक दिवस मैं पा जाऊँगा मुक्ति-सदन।191 ऊँ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्राय जयमाला-पूर्णायँ निर्वपामीति स्वाहा।
(दोहा) सर्प-चिन्ह शोभित चरण, पार्श्वनाथ उर धार। मन, वच, तन जो पूजते, वे होते भव पार।।
॥ इत्याशीर्वादः पुष्पांजलि क्षिपामि ॥
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