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उत्तम फल चरणों में अर्पित आत्म-ध्यान ही ध्याऊँ मैं। समकित का फल महामोक्ष-फल प्रभु अवश्य पा जाऊँ मैं।।
चिन्तामणि प्रभु पार्श्वनाथ की पूजन कर हर्षाऊँ मैं।
संकटहारी मंगलकारी श्री जिनवर-गुण गाऊँ मैं।। 8।। ऊँ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्राय मोक्षफल-प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।
अष्ट कर्म क्षय-हेतु अष्ट द्रव्यों का अर्घ्य बनाऊँ मैं। अविनाशी अविकारी अष्टम-वसुधापति बन जाऊँ मैं।। चिन्तामणि प्रभु पार्श्वनाथ की पूजन कर हर्षाऊँ मैं।
संकटहारी मंगलकारी श्री जिनवर-गुण गाऊँ मैं।। 9॥ ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।
पंचकल्याणक प्राणत-स्वर्ग त्यागाआये माता वामा के उर श्रीमान। कृष्ण दूज बैसाख सलोनी सोलह स्पप्न दिखे छविमान।।
पन्द्रह मास रत्न बरसे नित मंगलमयी गर्भ कल्याण।
जय-जय पार्श्व जिनेश्वर प्रभु परमेश्वर जय-जय दया-निधान।। ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्राय वैशाखकृष्णा-द्वितीयायां गर्भकल्याणक-प्राप्ताय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।
पौष कृष्ण एकादशी को जन्मे, हुआ जन्म-कल्याण।
ऐरावत गजेन्द्र पर आये तब सौधर्म इन्द्र ईशान।। गिरि सुमेरु पर क्षीरोदधि से किया दिव्य अभिषक महान।
जय-जय पार्श्व जिनेश्वर प्रभु परमेश्वर जय-जय दया-निधान।। ऊँ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथ जिनेन्द्राय पौषकृष्णा-एकादश्यां जन्मकल्याणक-प्राप्ताय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।
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