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अष्ट- अंगयुक्त सम्यक् दर्शन पाऊँ पुष्प चढाऊँ मैं। कामबाण विध्वंस करूँ निज शील स्वभाव सजाऊँ मैं ।।
चिन्तामणि प्रभु पार्श्वनाथ की पूजन कर हर्षाऊँ मैं। संकटहारी मंगलकारी श्री जिनवर - गुण गाऊँ मैं॥ 4॥
ऊँ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्राय कामबाण - विध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
इच्छाओं की भूख मिटाने सम्यक्-पथ पर आऊँ मैं। समकित का नैवेद्य मिले तो क्षुधा-रोग हर पाऊँ मैं।। चिन्तामणि प्रभु पार्श्वनाथ की पूजन कर हर्षाऊँ मैं। संकटहारी मंगलकारी श्री जिनवर - गुण गाऊँ मैं || 5 || ऊँ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्राय क्षुधारोग-विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
मिथ्यातम के नाश-हेतु यह दीपक तुम्हें चढ़ाऊँ मैं। समकित-दीप जले अन्तर में ज्ञान - ज्योति प्रगटाऊँ मैं ।। चिन्तामणि प्रभु पार्श्वनाथ की पूजन कर हर्षाऊँ मैं। संकटहारी मंगलकारी श्री जिनवर - गुण गाऊँ मैं || 6
ऊँ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्राय मोहान्धकार-विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
समकित-धूप मिले तो भगवान् शुद्ध भाव में आऊँ मैं। भाव शुभाशुभ धूम्र बन उड़ जायें धूप चढ़ाऊँ मैं।।
चिन्तामणि प्रभु पार्श्वनाथ की पूजन कर हर्षाऊँ मैं।
संकटहारी मंगलकारी श्री जिनवर - गुण गाऊँ मैं || 7 ||
ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्राय अष्टकर्म-दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
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