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सितशालि शशिदुति शुक्ति सुन्दर मुक्तकी उनहार हैं। भरि धार पुंज धरंत पदतर अखयपद करतार हैं।। श्रेयांसनाथ जिनन्द त्रिभुवनवन्द आनन्दकन्द है।।
दुखदंद-फंद-निकंद पूरनचन्द जोतिअमंद हैं।। ॐ ह्रीं श्रीश्रेयांसनाथजिनेन्द्राय अक्षयपद-प्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।3।
सद सुमन सुमन-समान पावन, मलयतें मधु झंकरें। पद-कमलतर धरतें तुरित सो मदनको मद खंकरें।। श्रेयांसनाथ जिनन्द त्रिभुवनवन्द आनन्दकन्द है।।
दुखदंद-फंद-निकंद पूरनचन्द जोतिअमंद हैं।। ऊँ ह्रीं श्रीश्रेयांसनाथजिनेन्द्राय कामबाण-विनाशनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।4
यह परम मोदक आदि सरस सँवारि सुन्दर चरु लियो। तुव वेदनी-मदहरन लखि, चरचों चरन शुचिकर हियो।। श्रेयांसनाथ जिनन्द त्रिभुवनवन्द आनन्दकन्द है।।
दुखदंद-फंद-निकंद पूरनचन्द जोतिअमंद हैं।। ॐ ह्रीं श्रीश्रेयांसनाथजिनेन्द्राय क्षुधारोग-विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।51
संशय-विमोह-विभरम-तम-भंजन दिनन्द समान हो। तातें चरनढिग दीप जोऊँ देहु अविचल ज्ञान हो।। श्रेयांसनाथ जिनन्द त्रिभुवनवन्द आनन्दकन्द है।।
दुखदंद-फंद-निकंद पूरनचन्द जोतिअमंद हैं।। ऊँ ह्रीं श्रीश्रेयांसनाथजिनेन्द्राय मोहान्धकार-विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।6।
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