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श्री श्रेयांसनाथ जिन-पूजा (रचयिता - श्री वृन्दावन)
छन्द रूपमाला तथा गीता
विमल-नृप विमला-सुअन, श्रेयांसनाथ जिनन्द सिंहपुर जन्मे सकल हरि, पूजि धरि आनन्द ।। भव-बंध ध्वंसनि-हेत लखि मैं शरन आयो येव।
थापौं चरनजुग उरकमल में, जजन - कारन देव
ऊँ ह्रीं श्रीश्रेयांसनाथजिनेन्द्र ! अत्र अवतर अवतर संवौषट्। (इति आह्वाननम् )
ऊँ ह्रीं श्रीश्रेयांसनाथजिनेन्द्र ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः । (स्थापनम् ) ऊँ ह्रीं श्रीश्रेयांसनाथजनेन्द्र ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्। (सन्निधिकरणम्)
छन्द गीता तथा हरिगीता
कलधौत वरन उतंग हिमगिरि पद्म-द्रहतैं आवई । सुरसरित प्रासुक-उदकसों भरि भृंग धार चढ़ावई ।। श्रेयांसनाथ जिनन्द त्रिभुवनवन्द आनन्दकन्द है। दुखदंद-फंद-निकंद पूरनचन्द जोतिअमंद हैं।
ॐ ह्रीं श्रीश्रेयांसनाथजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्यु-विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा। 1 ।
गोशीर वर करपूर कुंकुम-नीर - संग घसों सही। भवताप-भंजन-हेत भवदधि सेत चरन जजों सही || श्रेयांसनाथ जिनन्द त्रिभुवनवन्द आनन्दकन्द है।। दुखदंद-फंद-निकंद पूरनचन्द जोतिअमंद हैं।
ॐ ह्रीं श्रीश्रेयांसनाथजिनेन्द्राय संसारताप-विनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा। 2।
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