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धरणेन्द्र-पद्मावती आकर के उपसर्ग निवारण कर दीना। चैत्य कृष्ण की चतुर्थ तिथि को, केवलज्ञान को पा लीना।। केवल दिव्यध्वनि से प्रभु ने समवशरण उपदेश दिया। और धर्म अहिंसा सत्य महाव्रत अनेकांत को सुना दिया।। अनंत-चतुष्टय-धारी प्रभु ने अनंतगुणों को पा लीना। लोकालोक प्रकाशित करके नवलब्धि से था जीना।। श्रावण सुदी मुकुटसप्तमी से अष्टकर्म को नष्ट किया। सम्मेदशिखर पर्वत ऊपर से मोक्षलक्ष्मी को प्राप्त किया।। संकटहर पारस की महिमा मैं कहाँ तक कह सकता हूँ। तुम अनन्त-गुण-सम्पन्न कहाते, मैं प्रभु अल्पज्ञानी हूँ।। ___ औरंगाबाद शहर के उत्तर में, जटवाड़ा ग्राम है। मनमोहक प्रतिमा अतिसुंदर प्रभु बना तुम्हारा धाम है।। शेखनूर था कोई एक भव्य, घर की नीव खोदने लगा। तलघर अन्दर सुन्दर मूर्ति को, देख-देख मन हर्षाया।।
सोनाबाई जैनसमाज का सपना आज साकार हुआ। पर्युषण पर्व की ऋषिपंचमी को साक्षात् धर्म अवतार हुआ।। जय-जयकार हुआ था जटवाड़ा में भक्तों की भीड़ जमा पायी। महावीर कीर्ति मुनि आर्यनंदी की भविष्य वाणी अब सत्य हुयी।।
जयभद्र मुनि देवनन्दि ने चातुर्मास संकल्प किया।
क्षेत्रोद्धार समाजोद्धार कर जन-जन का उद्धार किया।। प्रभु तेरी महमा अगम्य कही मैं, गुणगान कहाँ तक कर सकता।
संकट हरने वाले हो तुम हो, विश्वशान्ति के वरदाता।। तुम राग-जीत तुम द्वेष-जीत तुम अक्ष-जीत कहलाते हो। तुम काम-जीत तुम लोभ-जीत तुम मानव-जीत कहलाते हो।। तुम जगत-ध्येय तुम सत्य ध्यान तुम ही उत्तम सुध्याता हो। तुम समदर्शी समताधारी तुम अतुल सौख्य-सुखदाता हो। जो भक्त तुम्हारा नाम जपे और चालीसा का पाठ करे। संकटकर सुख-समृद्धि पाकर मनवांछित भंडार भरे।।
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