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मुख्य आर्यिका सुलोचना थी श्रोता महासेना नृपवर। ओंकार ध्वनि प्रभु की खिरती चार समय शाश्वत सुखकर।28।
पापी कमठ शरण में आया उसका भी कल्याण किया। जग-जीवों को मोक्ष मार्ग का शुभ सन्देश महान दिया।29। __ अहिक्षेत्र की पुण्य धरा यह प्रभु के गीत सुनाती है। तपो-भूमि उपसर्ग-भूमि कैवल्य-भूमि यश गाती है।300
जो भी प्रभु का ध्यान लगाता उसके संकट कटते है।। जो भी निज का ध्यान लगाता उसके भव-दःख मिटते है।31।
मैं भी प्रभु का ध्यान लगाकर शुद्धातम को अपनाऊँ। पाप पुण्य आश्रव विनाश कर मैं भी पंचम गति पाऊँ।32।
प्रभु की पावन मूर्ति लख कर भेदज्ञान वैभव पाऊँ। जो अनादि से मिला न अब तक वह सम्यक् दर्शन पाऊँ।33। ___ जय-जय पार्श्वनाथ तीर्थंकर तेईसवें जिनेश महान। जब तक मोक्ष स्वपद न पाऊँ तब तक गाऊँ तव गुणगान।341
सर्प-चिन्ह चरणों में शोभित पार्श्वनाथ को करूँ नमन। जन्म-जन्म के पातक क्षय हों अनुक्रम से हो मुक्ति सदन।351 ऊँ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्राय महाध्यं निर्वपामीति स्वाहा।
ज्ञान-तीर्थ अहिक्षेत्र को बारम्बार प्रणाम। पार्श्वनाथ प्रभु को जपूँ विनय सहित वसु-याम।।
॥ इत्याशीर्वादः पुष्पांजलि क्षिपामि ॥
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