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शुद्ध भावअक्षत बिन स्वामी भव-अटवी में दुःख पाया। अक्षय-पद पाने को प्रभुवर शरण आपकी मैं आया ॥
अहिक्षेत्र - प्रभु पार्श्वनाथ के दर्शन करके हर्षाया। तपो भूमि कैवल्य-भूमि को वन्दन कर अति सुख पाया।। 3॥ ॐ ह्रीं श्रीअहिक्षेत्र पार्श्वनाथजिनेन्द्राय अक्षयपद-प्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।
शुद्ध भाव के सुमन बिना प्रभु शील-स्वभाव नहीं पाया। कामबाण की व्यथा मिटाने शरण आपकी मैं आया ||
अहिक्षेत्र - प्रभु पार्श्वनाथ के दर्शन करके हर्षाया। तपो-भूमि कैवल्य-भूमि को वन्दन कर अति सुख पाया ।। 4।।
ऊँ ह्रीं श्रीअहिक्षेत्रपार्श्वनाथजिनेन्द्राय कामबाण-विनाशनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
शुद्ध भाव नैवेद्य बिना प्रभु कभी तृप्त न हो पाया। क्षुधा-रोग की व्याधि हटाने शरण आपकी मैं आया।। अहिक्षेत्र - प्रभु पार्श्वनाथ के दर्शन करके हर्षाया।
तपो भूमि कैवल्य-भूमि को वन्दन कर अति सुख पाया। 5॥
ॐ ह्रीं श्रीअहिक्षेत्रपार्श्वनाथजिनेन्द्राय क्षुधारोग-विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
शुद्ध भाव दीपक बिन स्वामी मोह - तिमिर न हटा पाया।
मिथ्या-भ्रम अज्ञान हटाने शरण आपकी मैं आया ॥
अहिक्षेत्र प्रभु पार्श्वनाथ के दर्शन करके हर्षाया।
तपो-भूमि कैवल्य-भूमि को वन्दन कर अति सुख पाया ।। 6 ।।
ॐ ह्रीं श्रीअहिक्षेत्रपार्श्वनाथजिनेन्द्राय मोहान्धकार-विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
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