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दोहा
हेम-वरन तन तुंग धनु, नव्वै अति अभिराम। सुरतरु-अंक निहारि पद, पुनि-पुनि करों प्रणाम।2।
छन्द तोटक जय शीतलनाथ जिनन्दवरं, भवदाह-दवानल मेघझरं। दुख-भूभृत-भंजन वज्र समं, भवसागर-नागर पोत-परं।3। कुह-मान-मयागद-लोभ हरं, अरि विघ्नगयंद मृगिंद वरं। वृष-वारिदवृष्टन सृष्टिहि तू, परदृष्टि विनाशन सुष्टु पितू।4।
समवसृत-संजुत राजत हो, उपमा अभिराम विराजतु हो। वह बारह-भेद सभाथित को, तित धर्मबखानि कियो हितको।5।
पहले महि श्रीगणराज रजें, दुतिये महिं कल्पसुरी जु सज। त्रितिये गणनी गुन भूरि धरै, चवथे तिय-ज्योतिष जोति भरें।6।
तिय-विंतरनी पनमें गनिये, छहमें भुवनेसुर-तिय भनिये। भुवनेश दशों थित सत्तम हैं, वसुमें वसु-विंतर उत्तम हैं।7। नव में नभ-जोतिष पंच भरे, दशमें दिवि-देव समस्त खरे। नरवन्द इकादश में निवसें, अरु बारह में पशु सर्व लसें।8। तजि वैर, प्रमोद धरें सब ही, समता-रस मग्न लसें तब ही। धुनि दिव्य सुनें तजि मोहमलं, गनराज असी धरि ज्ञानबल।9। सबके हित तत्त्व बखान करें, करुना-मन-रंजित शर्म भरें। वरने षद्रव्य तनें जितने वर भेद विराजतु हैं तितने।10।
पुनि ध्यान उभै शिवहेतु मना, इक धर्म दुती सुकलं अधुना। तित धर्म सुध्यान तणों गुनियो, दशभेद लिखे भ्रम को हनियो।11।
पहलो अरि नाश अपाय सही, दुतियो जिन बैन उपाय गही। त्रिति जीवविषं निजध्यावन है, चवथो सु अजीव रमावन है।12।
पनमों सु उदै-बलटारन है, छहमों अरि-राग-निवारन है। भव-त्यागन-चिंतन सप्तम है, वसुमों जितलोभ न आतम है।13।
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