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श्री माघ की द्वादशि श्याम जायो, भूलोक में मंगल सार आयो। शैलेन्द्र पै इन्द्र फनिन्द जज्जे, मैं ध्यान धारौ भवदुःख भज्जे।।
ऊँ ह्रीं माघकृष्णा-द्वादश्यां जन्ममंगल-मंडिताय श्रीशीतलनाथजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।2।
श्री माघ की द्वादशि श्याम जानो, वैराग्य पायो भवभाव हानो। ध्यायो चिदानन्द निवार मोहा, चर्चों सदा चर्न निवारि कोहा।।
ॐ ह्रीं माघकृष्णा-द्वादश्यां तपोनमंगल-मंडिताय श्रीशीतलनाथजिनेन्द्राय अयं निर्वपामीति स्वाहा।3।
चतुर्दशी पौषवदी सुहायो, ताही दिना केवललब्धि पायो। शोभै समोसृत्य बखानि धर्मं, चर्चों सदा शीतल पर्म शम।। ॐ ह्रीं पौषकृष्णा-चतुर्दश्यां केवलज्ञानमंगल-मंडिताय श्रीशीतलनाथजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।40
कुवार की आ3 शुद्ध बुद्धा, भये महामोक्ष-सरूप शुद्धा। सम्मेद” शीतलनाथ स्वामी, गुनाकरं तासु पदं नमामी।। ॐ ह्रीं आश्विनशुक्ला-अष्टम्यां मोक्षमंगल-मंडिताय श्रीशीतलनाथजिनेन्द्राय अयं निर्वपामीति स्वाहा।5।
जयमाला
छंद (लोलतरंग) आप अनंत-गुनाकर राजे, वस्तुविकाशन भानु समाजे। मैं यह जानि गही शरना है, मोहमहारिपुको हरना है।1।
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