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इस जगमें थिर ना कोय, जन्म रू मरण करे। अक्षय-पद दीजे मोय, आये शरण तेरे।।
चिंतामणि-पारसनाथ चिंता दूर करें।
मन-चिंतित होत हि काज, जो प्रभु-चरण चुरे।। 3॥ ऊँ ह्रीं श्रीचिंतामणि-पार्श्वनाथजिनेन्द्राय अक्षयपद-प्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा।
यह काम महा विकराल, सब को तंग करे। छेदो यह प्रभु तत्काल, निजपद भंग करे।।
चिंतामणि-पारसनाथ चिंता दूर करें।
मन-चिंतित होत हि काज, जो प्रभु-चरण चुरे।।4।। ॐ ह्रीं श्रीचिंतामणि-पार्श्वनाथजिनेन्द्राय कामबाण-विनाशनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
नाना विधि व्यंजन थाल, लेकर मैं आयो। मेटो क्षुधा दीनदयाल, इस कारण आयो।।
चिंतामणि-पारसनाथ चिंता दूर करें।
मन-चिंतित होत हि काज, जो प्रभु-चरण चुरे।। 5॥ ऊँ ह्रीं श्रीचिंतामणि-पार्श्वनाथजिनेन्द्राय क्षुधारोग-विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
दीपक की ज्योति जगाय, धारो तुम आगे। मम मोह-तिमिर नश जाय, आतम गुण जागे।।
चिंतामणि-पारसनाथ चिंता दूर करें।
मन-चिंतित होत हि काज, जो प्रभु-चरण चुरे।। 6॥ ॐ ह्रीं श्रीचिंतामणि-पार्श्वनाथजिनेन्द्राय मोहान्धकार-विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
यह धूप दशांग मिला, अग्नि मांहि धरूँ। वसु कर्म शीघ्र जरि जाय, मुक्ति रमा को वरूँ।।चिंता0॥7॥ ऊँ ह्रीं श्रीचिंतामणि-पार्श्वनाथजिनेन्द्राय अष्टकर्म-दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
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