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श्रीपार्श्वनाथ जिन-पूजा (कचनेर) (रचयिता - क्षुल्लक सिद्धसागर जी)
(अड्डिल्ल) अश्वसेन-नृप-कंवर लाडला नाथजी, तीन लोक के जीव नमावें माथ जी। वसो मेरे हिय आन नमाऊँ शीश को, पूर्जे ले वसु द्रव्य जगत के ईश को।
(दोहा) चिंतामणि-पारस चरण, ध्यावे मन-वच-काय।
पाप-ताप संकट मिटे, पहुंचे शिवपुर जाय।। ऊँ ह्रीं श्रीचिंतामणि-पार्श्वनाथजिनेन्द्र! अत्र अवतर अवतर संवौषट्। (इति आह्वाननम्)
ऊँ ह्रीं श्रीचिंतामणि-पार्श्वनाथजिनेन्द्र! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः। (स्थापनम्) ऊँ ह्रीं श्रीचिंतामणि-पार्श्वनाथजि नेन्द्र! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्। (सन्निधिकरणम्)
(अथ अष्टक) क्षीरोदधि-सम जल लाय, ठाड़े तुम आगे। तव चरण चढाऊं आय, जन्म-मरण भागे।।
चिंतामणि-पारसनाथ चिंता दूर करें।
मन-चिंतित होत हि काज, जो प्रभु-चरण चुरे।।1।। ऊँ ह्रीं श्रीचिंतामणि-पार्श्वनाथजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्यु-विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
चन्दन शीतल जगमांहि, तुम सम है नाही। यह कर्म-कलंक मिट जाय, याघ्र प्रभू याही।।
__चिंतामणि-पारसनाथ चिंता दूर करें।
मन-चिंतितत होत हि काज, जो प्रभु-चरण चुरे।। 2।। ऊँ ह्रीं श्रीचिंतामणि-पार्श्वनाथजिनेन्द्राय संसारताप-विनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।
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