________________
महामेरु कनकाचल पर शुभ पांडुक-शिला बनी सुन्दर। सुरपति ने तब जन्म-महोत्सव अभिषेक किया पर्वत पर।
देव-इन्द्र असुरेन्द्र सभी मिल महामहोत्सव नृत्य किया।
पौष कृष्णा एकादशी को प्रभु जन्महोत्सव कर पुण्य लिया।। ऊँ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्राय पौषकृष्णा-एकादश्यां जन्ममंगल-मंडिताय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।2।
जन्म-मरण के रोगों से पीडित हुए भव-वन में। जीव अकेला ही आता जाता यह जान रहे प्रभु मन में।। जिनेश्वर दीक्षा लेकर के अध्यात्म के पथ को अपनाया।
एकादशी पौष कृष्ण के दिन संसार अथिर है दिखलाया।। ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्राय पौषकृष्णा-एकादश्यां तपोमंगल-मंडिताय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।3।
समोशरण में द्वादस परिषद मध्य रत्न-सिंहासन पर। चतुरांगुल के अंतराल से शोभी प्रभु सूर्य-सम सुन्दर।। गणधर मुनिगण विद्याधर सुरपति नरपति करते नमन।
कृष्ण चैत्र चतुर्थी को अहिक्षेत्र धरा को करते नमन।। ऊँ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्राय चैत्रकृष्णा-चतुर्थ्यां केवलज्ञान-प्राप्ताय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।4।
तपोभूमि वह शाश्वत भूमि पावन सिद्ध प्रभु जहाँ विराजे है। सम्मेद शिखर वह पर्वतराज जिसकी भक्ति हम करते हैं।। सुवरण भद्र वह कूट मनोहर पारस प्रभु जहाँ विराजे हैं।
श्रावण सुदी सप्तमी निर्वाण महोत्सव आज यहाँ मनाते हैं। ऊँ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्राय श्रावणसुदी-सप्तम्यां सम्मेदशिखरस्य स्वर्णभद्रकूटतः
मोक्षमंगलमंडिताय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।5।
561