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श्री नेमिनाथ जिन-पूजा (रचयिता - श्री राजमल जी)
जय श्री नेमिनाथ तीर्थंकर बाल ब्रह्मचारी भगवान। हे जिनराज परम उपकारी करुणा-सागर दया-निधान।। दिव्य-ध्वनि के द्वारा हे प्रभु तुमने किया जगत-कल्याण। श्री गिरनार-शिखर से पाया तुमने सिद्ध स्वपद निर्वाण।। आज तुम्हारेदर्शन करके निज-स्वरूप का आया ध्यान।
मेरा सिद्ध-समान सदा पद यह दृढ़ निश्चय हुआ महान।। ऊँ ह्रीं श्रीनेमिनाथजिनेन्द्र! अत्र अवतर अवतर संवौषट्। (इति आह्वाननम्)
ऊँ ह्रीं श्रीनेमिनाथजिनेन्द्र! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः। (स्थापनम्) ऊँ ह्रीं श्रीनेमिनाथजि नेन्द्र! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्। (सन्निधिकरणम्)
समकित-जल की धारा से तो मिथ्या-भ्रम धुल जाता है।
तत्त्वों का श्रद्धान स्वयं को शाश्वत-मंगल दाता है।। नेमिनाथ स्वामी तुम पद-पंकज की करता हूँ पूजन।
वीतराग तीर्थंकर तुमको कोटि-कोटि मेरा वन्दन ॥1॥ ऊँ ह्रीं श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय मिथ्यात्वमल-विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
सम्यक् श्रद्धा का पावन चन्दन भव-ताप मिटाता है। क्रोध कषाय नष्ट होती है निज की अरुचि हटाता है।।
नेमिनाथ स्वामी तुम पद-पंकज की करता हूँ पूजन।
वीतराग तीर्थंकर तुमको कोटि-कोटि मेरा वन्दन ॥ 2॥ ऊँ ह्रीं श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय क्रोधकषाय-विनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।
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