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मेघ-विलय लख इस जग की अनित्यता का प्रभु भान किया।
लौकान्तिक देवों ने आकर धन्य-धन्य जय-गान किया।। कृष्ण चतुर्दशी ज्येष्ठ मास की अतुलित-वैभव त्याग दिया। शान्तिनाथ ने मुनिव्रत धारा शुद्धातम अनुराग किया।।
ऊँ ह्रीं ज्येष्ठकृष्णा-चतुर्दश्यां तपोमंगल-मंडिताय श्रीशान्तिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।31
पौष शुक्ल दशमी को चारों घातिकर्म चकचूर किये।
पाया केवलज्ञान जगत के सारे संकट दूर किये।। समवशरण रचकर देवों ने किया ज्ञानकल्याण महान। शान्तिनाथ प्रभु की महिमा का गूंजा जग में जय-जय गान।।
ॐ ह्रीं पौषशुक्ला-दशम्यां केवलज्ञान-मंडिताय श्रीशान्तिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।4।
ज्येष्ठ कृष्ण की चतुर्दशी को प्राप्त किया सिद्धत्व महान।
कूट कुन्दप्रभ गिरि सम्मेद शिखर से पाया पद-निर्वाण।। सादि-अनन्त सिद्ध-पद को प्रगटाया प्रभु ने धर निज-ध्यान। जय-जय शान्तिनाथ जगदीश्वर अनुपम हुआ मोक्ष-कल्याण।।
ऊँ ह्रीं ज्येष्ठकृष्णा-चतुर्दश्यां मोक्षमंगल-मंडिताय श्रीशान्तिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।51
जयमाला शान्तिनाथ शिवनायक शान्ति विधायक शुचिमय शुद्धात्मा। शुभमूर्ति शरणागत वत्सल शील-स्वभावी शान्तात्मा।। नगर हस्तिनापुर के अधिपति विश्वसेन-नृप के नन्दन। माँ ऐरा के राजदुलारे सुर-नर मुनि करते बन्दन।
कामदेव-बारहवें पंचम-चक्री तीन-ज्ञान-धारी। बचपन में अणुव्रत धर यौवन में पाया वैभव भारी।।
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