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सित कार्तिक गाये दोइज घाये, घातिकरम परचंडा जी । केवल परकाशे भ्रमतम नाशे, सकल भविक सुख मंडा जी ।। गनराज अठासी आनंदभासी, समवसरण वृषदाता जी । हरि पूजन आयो शीश नमायो, हम पूजें जगत्राता जी।। ॐ ह्रीं कार्तिकशुक्ला-द्वितीयायां ज्ञानमंगल-प्राप्ताय श्रीपुष्पदन्तजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।4।
भादव सित सारा आठै धारा, गिरिसमेद निरवाना जी। गुन अष्ट-प्रकारा अनुपम धारा, जय-जय कृपा निधाना जी ।। तित इन्द्र सु आयौ, पूज रचायौ, चिह्न तहाँ करि दीना जी। मैं पूजत हों गुन ध्यान महीसौं, तुमरे रसमें भीना जी।। ऊँ ह्रीं भाद्रपदशुक्ला- अष्टम्यां मोक्षमंगल-प्राप्ताय श्रीपुष्पदन्तजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।5।
जयमाला (दोहा)
लच्छन मगर सुश्वेत तन तुंग धनुष शत एक सुरनर-वंदित मुकतपति, नमों तुम्हें शिर टेक। 1 ।
पुहुपदन्त गुनवदन है, सागरतोय समान । क्योंकर-कर अंजुलिनकर, करिये तासु प्रमान।1।
छन्द तामरस
पुष्पदन्त जयवन्त नमस्ते, पुण्य तीर्थंकर सन्त नमस्ते। ज्ञान-ध्यान अमलान नमस्ते, चिद्विलास - सुख - ज्ञान नमस्ते।3। भवभय-भंजन देव नमस्ते, मुनिगणकृत पद- सेव नमस्ते। मिथ्या-निशि दिनइन्द्र नमस्ते, ज्ञानपयोदधि-चन्द्र नमस्ते।4। भवदुःख-तरु निःकन्द नमस्ते, राग-दोष -मद- हनन नमस्ते । विश्वेश्वर गुनभूर नमस्ते, धर्म सुधारस पूर नमस्ते।5।
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