________________
श्रीशान्तिनाथ जिन-पूजा (रचयिता - श्री बख्तावरसिंह) सर्वारथ-सुविमान त्याग गजपुर में आये। विश्वसेन-भूपाल तासु के नन्द कहाये। पंचम-चक्री भये मदन-द्वादशवें राजे। मैं सेलूँ तुम चरण तिष्ठये ज्यों दुःख भाजे।। ऊँ ह्रीं श्रीशान्तिनाथजिनेन्द्र! अत्र अवतर अवतर संवौषट्। (इति आह्वाननम्)
___ऊँ ह्रीं श्रीशान्तिनाथजिनेन्द्र! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः। (स्थापनम्) ऊँ ह्रीं श्रीशान्तिनाथजि नेन्द्र! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्। (सन्निधिकरणम्)
अथ अष्टक पंचम-उदधि-तनो जल निरमल कंचन-कलश भरे हरषाय। धार देत ही श्रीजिन सन्मुख जन्म-जरा-मृत दूर भगाय।।
शांतिनाथ पंचम-चक्रेश्वर द्वादश-मदन-तनो पद पाय।
तिन के चरण-कमल के पूजे रोग-शोक दुःख-दारिद जाय।। ॐ ह्रीं श्रीशान्तिनाथजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्यु-विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।।।
मलयागिर चंदन कदली-नंदन कुंकुम जल के संग घिसाय। भव-आताप विनाशन कारण चरचूँ चरण सबै सुखदाय॥
शांतिनाथ पंचम-चक्रेश्वर द्वादश-मदन-तनो पद पाय।
तिन के चरण-कमल के पूजे रोग-शोक दुःख-दारिद जाय।। ऊँ ह्रीं श्रीशान्तिनाथजिनेन्द्राय संसारताप-विनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।2।
पुण्यराशि-सम उज्ज्वल अक्षत शशि-मरीचि तसु देख लजाय।
पुंज किये तुम चरणन आगे अक्षय-पद के हेतु बनाय।।
शांतिनाथ पंचम-चक्रेश्वर द्वादश-मदन-तनो पद पाय।
तिन के चरण-कमल के पूजे रोग-शोक दुःख-दारिद जाय।। ऊँ ह्रीं श्रीशान्तिनाथजिनेन्द्राय अक्षयपद-प्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा।3।
523