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भौतिक
सुख की इच्छाओं का मैंने अब तक सम्मान किया। निर्वाण मुक्ति-फल पाने को मैंने न कभी निज ध्यान किया।। त्रिभुवन-पति वासुपूज्य स्वामी प्रभु मेरी भव बाधा हरलो। चारों गतियों के संकट हर हे प्रभु मुझको निज-सम कर लो।। ॐ ह्रीं श्रीवासुपूज्यजिनेन्द्राय मोक्षफल प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा। 8 ।
जब तक अनर्घ-पद मिले नहीं तब तक मैं अर्घ चढ़ाऊँगा । निज-पद मिलते ही हे स्वामी फिर कभी नहीं मैं आऊँगा ।। त्रिभुवन - पति वासुपूज्य स्वामी प्रभु मेरी भव बाधा हरलो । चारों गतियों के संकट हर हे प्रभु मुझको निज-सम कर लो।।
ॐ ह्रीं श्रीवासुपूज्यजिनेन्द्राय अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
पंचकल्याणक
त्यागा महा शुक्र का वैभव माँ विजया - उर में आये। शुभ आषाढ़ कृष्ण षष्ठी को देवों ने मंगल गाये ।।
चम्पापुर नगरी की रचना नव बारह-योजन विस्तृत। वासुपूज्य के गर्भोत्सव पर हुए नगरवासी हर्षित।।
ॐ ह्रीं आषाढ़ कृष्णा-षष्ठ्यां गर्भमंगल-प्राप्ताय श्रीवासुपूज्यजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा। 1।
फागुन कृष्ण चतुर्दशी को नाथ आपने जन्म लिया। नृप वसुपूज्य पिता हर्षाये भरत क्षेत्र को धन्य किया।। गिरि-सुमेरु पर पाण्डुक वन में हुआ जन्म-कल्याण महान। वासुपूज्य का क्षीरोदधि से हुआ दिव्य- अभिषेक प्रधान ।।
ॐ ह्रीं फाल्गुनकृष्णा चतुर्दश्यां जन्ममंगल-प्राप्ताय श्रीवासुपूज्यजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा। 2।
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