________________
कन्दर्प काम के पुष्प अब मैं दूर करूँ। पर-परिणति का व्यापार प्रभु चकचूर करूँ।।
हे शीतलनाथ जिनेश शीतलता-धारी।
हे शील-सिन्धु शीलेश सब संकट-हारी।। ॐ ह्रीं श्रीशीतलनाथजिनेन्द्राय कामबाण-विनाशनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।40
चरु-सेवन दुःखकार भव-पीड़ा-दायक। है क्षुधा-रहित निज-रूप सुखमय शिवनायक।।
हे शीतलनाथ जिनेश शीतलता-धारी।
हे शील-सिन्धु शीलेश सब संकट-हारी।। ऊँ ह्रीं श्रीशीतलनाथजिनेन्द्राय क्षुधारोग-विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।51
अज्ञान तिमिर महान घनघोर उर में आया है। रवि सम्यक्ज्ञान-प्रकाश मझको पाया है।।
हे शीतलनाथ जिनेश शीतलता-धारी।
हे शील-सिन्धु शीलेश सब संकट-हारी।। ऊँ ह्रीं श्रीशीतलनाथजिनेन्द्राय मोहान्धकार-विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।6।
चारों कषायों का संग हे प्रभु हट जाये। हो कर्मचक्र का ध्वंस भव-दुःख मिट जाये।।
हे शीतलनाथ जिनेश शीतलता-धारी।
हे शील-सिन्धु शीलेश सब संकट-हारी।। ऊँ ह्रीं श्रीशीतलनाथजिनेन्द्राय अष्टकर्म-दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।71
508