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श्री शीतलनाथ जिन-पूजा (रचयिता - श्री राजमल जी) जय-जय प्रभु शीतलनाथ शील के सागर शील-सिन्धु शीलेश।
कर्म-जाल के शीतल-कर्ता केवलज्ञानी महा महेश।। त्रैकालिक ज्ञायक-स्वभाव ध्रुव के आश्रय से हुए जिनेश।
मुझको भी निज-सम शीतल कर दो है विनय सही परमेश।। ऊँ ह्रीं श्रीशीतलनाथजिनेन्द्र! अत्र अवतर अवतर संवौषट्। (इति आह्वाननम्)
ॐ ह्रीं श्रीशीतलनाथजिनेन्द्र! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः। (स्थापनम्) ऊँ ह्रीं श्रीशीतलनाथजनेन्द्र! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्। (सन्निधिकरणम्)
निर्मल उज्ज्वल जलधार चरणों में सोहे। यह जन्म-रोग मिट जाय निज में मन मोहे।।
हे शीतलनाथ जिनेश शीतलता-धारी।
हे शील-सिन्धु शीलेश सब संकट-हारी।। ऊँ ह्रीं श्रीशीतलनाथजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्यु-विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।।।
चन्दन सी सुरस सुगन्ध मुझ में भी आये। भव-ताप दूर हो जाये शीतलता छाये।। हे शीतलनाथ जिनेश शीतलता-धारी।
हे शील-सिन्धु शीलेश सब संकट-हारी।। ऊँ ह्रीं श्रीशीतलनाथजिनेन्द्राय संसारताप-विनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।2।
निज अक्षय-पद का भान करने आया हूँ। हर्षित हो शुभ्र-अखण्ड-तन्दुल लाया हूँ।।
हे शीतलनाथ जिनेश शीतलता-धारी।
हे शील-सिन्धु शीलेश सब संकट-हारी।। ऊँ ह्रीं श्रीशीतलनाथजिनेन्द्राय अक्षयपद-प्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा।3।
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