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श्री पुष्पदंत जिन-पूजा (रचयिता - श्री वृन्दावन)
पुष्पदन्त भगवन्त सन्त सुजपंत तंत गुन। महिमावन्त महन्त कन्त शिवतिय-रमन्त मुन।।
काकन्दीपुर जन्म पिता सुग्रीव रमासुत।
स्वेतवरन मनहरन तुम्हें थापों त्रिवार नुत।। ॐ ह्रीं श्रीपुष्पदन्तजिनेन्द्र! अत्र अवतर अवतर संवौषट्। (इति आह्वाननम्)
ऊँ ह्रीं श्रीपुष्पदन्तजिनेन्द्र! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः। (स्थापनम्) ॐ ह्रीं श्रीपुष्पदन्तजनेन्द्र! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्। (सन्निधिकरणम्)
होली चाल मेरी अरज सुनीजे, पुष्पदन्त जिनराय,
मेरी अरज सुनीजे। पुष्पदन्त जिनराय।। हिमवनगिरिगत गंगाजल भर, कंचनभुंग भराय। करम-कलंक निवारनकारन, जजों, तुम्हारे पाय।।
मेरी अरज सुनीजे, पुष्पदन्त जिनराय।। ऊँ ह्रीं श्रीपुष्पदन्तजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्यु-विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।।
बावन चन्दन कदलीनंदन, कुंकुम-संग घसाय। चरचों चरन हरन मिथ्यातम, वीतराग गुणगाय।।
मेरी अरज सुनीजे, पुष्पदन्त जिनराय । ॐ ह्रीं श्रीपुष्पदन्तजिनेन्द्राय भवाताप-विनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।2।
शालि अखंडित सौरभ-मंडित, शशिसम द्युति दमकाय। ताको पुंज धरों चरननढिग, देहु अखय पदराय।।
मेरी अरज सुनीजे, पुष्पदन्त जिनराय।। ऊँ ह्रीं श्रीपुष्पदन्तजिनेन्द्राय अक्षयपद-प्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा।3।
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