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दिव्यध्वनि के द्वारा तुमने किया सकल जग का कल्याण।।
चौरा गणधर थे प्रभु के पहले वृषभसेन गणधर । मुख्य आर्यिका श्री ब्राह्मी श्रोता मुख्य भरत नृपवर।। भरत क्षेत्र के आर्य खण्ड में नाथ आपका हुआ विहार | धर्मचक्र का हुआ प्रवर्तन सुखी हुआ सारा संसार। अष्टापद कैलाश धन्य हो गया तुम्हारा कर गुणगान | आज तुम्हारे दर्शन करके मेरे मन आनन्द हुआ। जीवन सफल हुआ है स्वामी नष्ट पाप दुःख - द्वन्द हुआ।। यही प्रार्थना करता हूँ प्रभु उर में ज्ञान प्रकाश भरो। चारों गतियों के भव संकट मैं भी यही भावना भाता हूँ।
इसीलिए यह पूर्ण अर्घ चरणों में नाथ चढ़ाता हूँ।। ॐ ह्रीं श्रीऋषभदेवजिनेन्द्राय महार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
वृषभ चिह्न शोभित चरण ऋषभदेव उर धार । मन वच तन जो पूजते वे होते भव पार।।
।। इत्याशीर्वादः पुष्पांजलि क्षिपामि ॥
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