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माघ बदी की चतुर्दशी को गिरि कैलाश हुआ पावन।
आठों करम विनाशे पाया परम सिद्ध पद मनभावन।। मोक्षलक्ष्मी पाई गिरि कैलाश शिखर, निर्वाण हुआ।
जय-जय ऋषभनाथ तीर्थंकर भव्य मोक्ष कल्याण हुआ।। ऊँ ह्रीं माघकृष्णा-चतुर्दशीदिने मोक्षमंगल-प्राप्ताय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।
जयमाला जम्बू दीप सु भरत क्षेत्र में नगर अयोध्यापुरी विशाल। नाभिराय चौदहवे कुलकर के सुत मरुदेवी के लाल।। सोलह स्वप्न हुए माता को पन्द्रह मास रत्न बरसे।
तुम आये सर्वार्थ सिद्धि से माता उर मंगल सरसे।। मति श्रुति अवधि ज्ञान के धारी जन्मे हुए जन्म कल्याण। इन्द्र सुरों ने हर्षित पाण्डुकशिला किया अभिषेक महान।।
राज्य अवस्था में तुमने जन-जन के कष्ट मिटाये थे। असि मसि कृषि वाणिज्य शिल्प विद्या षट्कर्म सिखाये थे।। एक दिवस जब नृत्य लीन सुरि नीलांजना विलीन हुई। है पर्याय अनित्य आयु उसकी पल भर में क्षीण हुई।। तुमने वस्तु स्वरूप विचारा जागा उर वैराग्य आधार। कर चिंतवन भावना द्वादश त्यागा राज्य और परिवार।। लौकान्तिक देवों ने आकर किया आपका जय जयकार। आस्रव हेय जानकर तुमने लिया हृदय में संवर धार।। वन सिद्धार्थ गये वट तरु नीचे वस्त्रों को त्याग दिया। ऊँ नमः सिद्धेभ्यः कहकर मौन हुए तप ग्रहण किया।। स्वयं बुद्ध बन कर्म भूमि में प्रथम सुजिन दीक्षाधारी। ज्ञान मनःपर्यय पाया धर पंच महाव्रत सुखकारी। धन्य हस्तिनापुर के राजा श्रेयांस ने दान दिया।
एक वर्ष पश्चात् इक्षुरस से तुमने पारणा किया।। एक सहस्र वर्ष तप कर प्रभु शुक्ल ध्यान में हो तल्लीन। पाप पुण्य आस्रव विनाश कर हुए आत्म रस में लवलीन।।
चार घातिया कर्म विनाशे पाया अनुपम केवल ज्ञान।
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