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श्री आदिनाथ जिन-पूजा ( रचयिता - श्री राजमल जी)
जय आदिनाथ जिनेन्द्र जय-जय प्रथम जिन तीर्थंकरम्। जय नाभिसुत मरुदेवी के नन्दन ऋषभ प्रभु जगदीश्वरम्।। जय जयति त्रिभुवन तिलक चूड़ामणी वृषभ विश्वेश्वरम्। देवाधिदेव जिनेश जय-जय महाप्रभु परमेश्वरम्।।
ऊँ ह्रीं श्रीआदिनाथजिनेन्द्र ! अत्र अवतर अवतर संवौषट्। (इति आह्वाननम्) ऊँ ह्रीं श्रीआदिनाथजिनेन्द्र ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः। (स्थापनम् ) ऊँ ह्रीं श्रीआदिनाथजिनेन्द्र ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्। (सन्निधिकरणम्)
समकित जल दो प्रभु आदि निर्मल भाव भरूँ।
दुःख जन्म-मरण मिट जाय जल से धार करूँ ।। जय ऋषभदेव जिनराज शिवसुख के दाता। तुम सम हो जाता जीव स्वयं को जो ध्याता ।।
ऊँ ह्रीं श्रीऋषभनाथजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्यु-विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
समकित चन्दन दो नाथ भव - सन्ताप हरूँ ।
चरणों में मलय-सुगन्ध हे प्रभु भेंट करूँ । जय ऋषभदेव जिनराज शिवसुख के दाता। तुम सम हो जाता जीव स्वयं को जो ध्याता ॥
ॐ ह्रीं श्री ऋषभनाथजिनेन्द्राय संसारताप-विनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।
समकित तन्दुल की चाह मन में मोद भरे । अक्षत से पूजूँ देव अक्षय पद संवरे ।
जय ऋषभदेव जिनराज शिवसुख के दाता। तुम हो जाता जीव स्वयं को जो ध्याता ।।
ॐ ह्रीं श्रीऋषभनाथजिनेन्द्राय अक्षयपद-प्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा।
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