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नवमी कृष्णा चैत, भयो जन्म कल्याणमय। नरकों में भी नाथ, इक क्षण को साता भई।। इन्द्रादिक भी आय, कियो महोत्सव जन्म को।
मेरु पर अभिषेक, क्षीरोदधि तें प्रभु भयो।। ऊँ ह्रीं चैत्रकृष्णा-नवम्यां जन्मकल्याणक-प्राप्ताय श्रीआदिनाथजिनेन्द्राय अयं निर्वपामीति स्वाहा।
भासो जगत असार, देख निधन नीलांजना। नवमी कृष्णा चैत्र परम दिगम्बर पद धरो।। चिदानन्द पद सार, ध्यावन को मुनिपद धरो।
लौकान्तिक सुर आय अनुमोदा वैराग्य को।। ऊँ ह्रीं चैत्रकृष्णा-नवम्यां तपकल्याणक-प्राप्ताय श्रीआदिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।
प्रगट्यो केवल ज्ञान, फाल्गुन कृष्ण एकादशी। धर्म तीर्थ सुखकार, हुआ प्रवर्तित आप से।। समझो तत्त्व स्वरूप, दिला देशना श्रवण कर।
पाई मुक्ति अनूप, भव्यन निज पुरुषार्थ तें।। ऊँ ह्रीं फाल्गुनकृष्णा-एकादश्यां ज्ञानकल्याणक-प्राप्ताय श्रीआदिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।
पायो अविचल थान, चौदश कृष्णा माघ दिन। गिरि कैलाश महान, तीर्थ प्रगट जग में भयो। सहज मुक्ति अविकार, शुद्धातम की भावना।
वर्ते प्रभु सुखकार, मैं भी तिष्ठू आप ढिंग।। ऊँ ह्रीं माघकृष्णा-चतुर्दश्यां मोक्षकल्याणक-प्राप्ताय श्रीआदिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।
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