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कमलासन पर पद्मासन से, ऋषभदेव जी बैठे हैं।। तीन छत्र ऊपर सोने के, शोभा अद्भुत न्यारी है।
वीतराग मुद्रा है तेरी, सुर नर सबको प्यारी हैं।। तेरी पूजा जो कोई करता, विपदा सब टल जाती हैं।
भूत परेतों के बाधायें, पूजन से भग जाती हैं।। श्रद्धा से जो छत्र चढ़ाते, सुख सम्पत्ति सब पाते हैं।
जय जयकार करें बाबा की, पूजा का फल पाते हैं।। ऊँ ह्रीं श्री 1008 महाअतिशयकारी साँगानेर वाले बाबा आदिनाथजिनेन्द्राय पूर्णायँ निर्वपामीति
स्वाहा।
शरण आपकी आया हूँ मैं, प्रभु मेरा उद्धार करो। मेरी इस खाली झोली में, करुणा का भण्डार भरो।।
ध्यान धनेश्वर महामुनीश्वर तुमको बारम्बार नमन आदि जिनेश्वर हे परमेश्वर हो जावे सब ओर चमन।।
॥ इत्याशीर्वादः पुष्पांजलि क्षिपामि ॥
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