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अमर हो गईं ये गाथाएँ, कुसुम-रूप का तुम्हें नमन ।। जिन भक्तों को तेरे चरणों में, हो मिला हुआ आश्रय। उनका बाल न बाँका होगा, यह तो है अब निश्चय ||
भारत भर में गूंज रही है, तव यश-अक्षय भेरी। देश-देश के यात्री करते, जय-जयकार प्रभु तेरी || ऊँ ह्री अनिष्ट निवारक - श्री आदिनाथजिनेन्द्राय पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा। आदीश्वर की जो भवि, नित पूजा करें। धन-धान्य सन्तान, अतुल निधि विस्तरें ।। होय अमंगल दूर, शरीर निरोग धरें। अनुक्रम से सुख पाय, मुक्तिश्री को वरें।
॥ इत्याशीर्वादः पुष्पांजलि क्षिपामि ॥
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