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आठों दरब साजि गुनगाय, नाचत राचत भगति बढ़ाय।
दयानिधि हो, जय जगबंधु दयानिधि हो।।
तुम पद पूजों मनवचकाय, देव सुपारस शिवपुरराय। ऊँ ह्रीं श्रीसुपार्श्वनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।।9।।
पंचकल्याणक
छन्द द्रुतविलम्बित तथा सुन्दरी सुकल भादव छ? सुजानिये, गरभमंगल ता दिन मानिये।
करत सेव शची रचि मात की, अरघ लेय जजों वसु-भांत की।। ॐ ह्रीं भाद्रपदशुक्ला-षष्ठ्या गर्भमंगल-प्राप्ताय श्रीसुपार्श्वनाथजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।।।
सुकल जेठ दुवादिशि जन्मये, सकल जीव सु आनन्द तन्मये।
त्रिदशराज जजें गिरिराजजी, हम जजै पद मंगल साजजी।। ॐ ह्रीं ज्येष्ठशुक्ला-द्वादश्यां जन्ममंगल-प्राप्ताय श्रीसुपार्श्वनाथजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।2।
जनमके तिथि श्रीधर ने धरी, तप समस्त प्रमादन को हरी।
नृपमहेन्द्र दियो पय भावसो, हम जजें इत श्रीपद चावसों।। ऊँ ह्रीं ज्येष्ठशुक्ला-द्वादश्यां तपोमंगल-प्राप्ताय श्रीसुपार्श्वनाथजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।31
भ्रमर फागुन छट्ठ सुहावनो, परम केवल ज्ञान लहावनो।
समवसन विषै वृष भाखियो, हम जजें पद आनन्द चाखि यो।। ऊँ ह्रीं फाल्गुनकृष्णा-षष्ठ्यां केवलज्ञान-प्राप्ताय श्रीसुपार्श्वनाथजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।4।
असित फागुन सातय पावनों, सकल कर्म कियो छय भावनो।
गिरिसमेद थकी शिव जातु हैं, जजत हि सब विघ्न विलातु हैं।। ऊँ ह्रीं फाल्गुनकृष्णा-सप्तम्यां मोक्षमंगल-प्राप्ताय श्रीसुपार्श्वनाथजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।5।
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