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प्रासुक सुमन सुगंधित सार, गुंजत अलि मकरध्वजहार।
दयानिधि हो, जय जगबंधु दयानिधि हो।।
तुम पद पूजों मनवचकाय, देव सुपारस शिवपुरराय। ऊँ ह्रीं श्रीसुपार्श्वनाथजिनेन्द्राय कामबाण-विनाशनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।।4।
छुधाहरण नेवज वर लाय, हरों वेदनी तुम्हें चढ़ाय।
दयानिधि हो, जय जगबंधु दयानिधि हो।। तुम पद0॥ ऊँ ह्रीं श्रीसुपार्श्वनाथजिनेन्द्राय क्षुधारोग-विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।।5।।
ज्वलित दीप भरकरि नवनीत, तुम ढिग धारत हों जगमीत।
दयानिधि हो, जय जगबंधु दयानिधि हो।।
तुम पद पूजों मनवचकाय, देव सुपारस शिवपुरराय। ऊँ ह्रीं श्रीसुपार्श्वनाथजिनेन्द्राय मोहान्धकार-विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।।6।
दशविधि गन्ध हुताशन माहिं, खेवत क्रूर-करम जरि जाहिं।।
दयानिधि हो, जय जगबंधु दयानिधि हो।।
तुम पद पूजों मनवचकाय, देव सुपारस शिवपुरराय। ऊँ ह्रीं श्रीसुपार्श्वनाथजिनेन्द्राय अष्टकर्म-दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।।7।
श्रीफल केला आदि अनूप, ले तुम अग्र धरो शिवभूप।
दयानिधि हो, जय जगबंधु दयानिधि हो।।
तुम पद पूजों मनवचकाय, देव सुपारस शिवपुरराय। ऊँ ह्रीं श्रीसुपार्श्वनाथजिनेन्द्राय मोक्षमहाफल-प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा॥8॥
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