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अच्छे बुरे सभी कर्मों ने, हमको बाँधा इस जग में। सब जल जाता ये ना जलते, सुख-दुख देते पग-पग में।। धूप सुगन्धी तव-पद-रज से, कर्माष्टक झट जल जाये।
आज बड़ेबाबा के द्वारे, धूप चढ़ाने को लाये।। ऊँ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं बड़ेबाबा अहँ नमः अष्टकर्म-दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
फल की इच्छा से इस जग के, हमने काम किये सारे। पाये खुशी क्षणिक फल पाकर, दुखी हुये जब हम हारे।। दुखी जगत के सब फल तजकर, मोक्ष महाफल मन भाये।
आज बड़ेबाबा के द्वारे, शुभ फल पूजन को लाये।। ऊँ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं बड़ेबाबा अहँ नमः मोक्षमहाफल-प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।
शुचि जल चन्दन अक्षत लाये, शुद्ध पुष्प नैवेद्य लिये। दीप धूप नाना फल मिश्रित, श्रेष्ठ अर्घ्य हम भेंट किये।। अर्घ्य चढ़ाने वाले भविजन, अनर्घ्य पद आतम पाये।
आज बड़ेबाबा के द्वारे, अर्घ्य चढ़ाने को लाये।। ऊँ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं बड़ेबाबा अहँ नमः अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।
जयमाला -दोहा नाथ बड़े बाबा बड़े, स्वामी परम दयालं। भक्ति सहित गुणगान की, कथा करूँ जयमाल।।
(ज्ञानोदय छन्द)
मध्यप्रदेश दमोह जिले में, कुण्डलपुर इक ग्राम रहा। इसके दक्षिण में इक पर्वत, कुण्डलपुर शुभधाम रहा।।
ऊपर नीचे जहाँ बहुत से, मन्दिर प्रतिमाएँ प्यारी। बीचों-बीच बड़ेबाबा की, प्रतिमा है अतिशयकारी।।1।। अतिशय की है कथा निराली, किंवदन्ति व्यापारी की।
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