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सो छवि हि तिहारी, आनंदकारी, रोज हमारी, पीर हरे। जाकी दुति भारी, जग विस्तारी, दरसतकारी, घननिंदरे। वामा के प्यारे, जग उजियारे, धूप सों थारे, पद, परसों।।
जिन परसे सारे, पातक जारे, और सँवारे, शिव दरसों। ओं ह्रीं श्री पार्श्वनाथजिनेन्द्राय अष्टकर्मदहनाय धूपम् निर्वपामीति स्वाहा।
प्रभु पारस स्वामी, अर्लामी, हो बड़नामी विश्वपती, थारे गुणगाऊँ, शीस नवाऊँ, बलि बलि जाऊँ, दे सुगती। वामा के प्यारे, जग उजियारे, फल सों थारे, पद, परसों।।
जिन परसे सारे, पातक जारे, और सँवारे, शिव दरसों। ओं ह्रीं श्री पार्श्वनाथजिनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये फलम् निर्वपामीति स्वाहा।
जल चन्दन शुभ अक्षत, पुष्प सुहावने। दीपक चरु वर धूप, फलौध सु पावने।
ये वसु द्रव्य मिलाय, अध्य कीजे महा।
तुम पद जजत निहाल, होत औ हित कहा। ओं ह्रीं श्री पार्श्वनाथजिनेन्द्राय अनध्य पद प्राप्तये अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
पंचकल्याणक वैशाख वदी दतिया के, दिन गर्भ रहे निज मां के।
वाता उर आनंद बाढ़े, हम अध्य चढ़ावत ठाँड़े। ओं ह्रीं वैशाखकृष्णद्वितीयायां गर्भकल्याणकप्राप्ताय श्री पार्श्वनाथजिनेन्द्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
वदि पौष इकादशि जानी, प्रभु जन्म लिये सुखखानी।
करि अध्य यहां हम ध्यावें, मनवांछित सुख अब पावें। ओं ह्रीं अषाढकृष्णएकादश्यां जन्मकल्याणकप्राप्ताय श्री पार्श्वनाथजिनेन्द्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
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