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प्रभुकेवल पाया ऐलविल आया, रुचिर बनाया, समवसृतं। तामांहि विराजे सूरज लाजे, इमि छवि छाजे, कहत श्रुतं। वामा के प्यारे, जग उजियारे, अक्षत सों थरे, पद, परसों।।
जिन परसे सारे, पातके जारे, और सँवारे, शिव दरसों। ओं ह्रीं श्री पार्श्वनाथजिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा।
आसन तें सूचे, अंगुल ऊँचे, चव चव आनन, नाथ भये। तिनतें सुखदानी, खिरत सुवानी, सुनि भवि प्रानी सुगति गये। वामा के प्यारे, जग उजियारे, पुष्पसों थारे, पद, परसों।।
जिन परसे सारे, पातके जारे, और सँवारे, शिव दरसों। ओं ह्रीं श्री पार्श्वनाथजिनेन्द्राय कामवाणविनाशनाय पुष्पम् निर्वपामीति स्वाहा।
कछु इच्छा नाहीं, विन डग धारी, होत विहारी, परम गुरू। जिन प्राणिन केरा, तरव सबेरा, तितै नाथ मग होतसुरू। वामा के प्यारे, जग उजियारे, चारू सों थारे, पद, परसों।।
जिन परसे सारे, पातक जारे, और सँवारे, शिव दरसों। ओं ह्रीं श्री पार्श्वनाथ जिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यम् निर्वपामीति स्वाहा
बहु देशन माँही, प्रभु विहराहीं, भविजीवन, सम्बोधि दये। मिथ्यामत भारी, तिमिर विदारी, जिनमत रीजा करत भये। वामा के प्यारे, जग उजियारे, दीप सों थारे, पद परसों।।
जिन परसे सारे, पातक जारे, और सँवारे, शिव दरसों। ओं ह्रीं श्री पार्श्वनाथजिनेन्द्राय मोहान्धकारविनाशनाय दीपम् निर्वपामीति स्वाहा।
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