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मास अषाढ़ सुदी सातें गिर, नार पहारतें कीन्ह पयाना। जाय वसे शिवमन्दिर मांझ, अनन्त जहां सुखको नहिं माना।
जात मोक्ष कल्यान तबै, शचिनाथ समेत सवै गिरवाना। पूजि यथाविध गे घर सो हम पूजत अघ्य लिये तजिमाना।।
ओं ह्रीं आषाढशुक्लसप्तम्यां मोक्षकल्याणकप्राप्ताय श्री नेमिनाथजिनेन्द्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
जय यादव वर वंश तने श्रृंगार विश्वपति । जय पुरुषोत्तम कमलनयन प्रभु देत सुगति गति।
जय अनमित वर ज्ञान धरत वैकुण्ठ - विहारी । जय मिथ्यातम-तिमिर-हरन -सूरत हितकारी । तोटक छन्द
जय नेमि सदा गुणवास नमों, जय पूरहु मो मन आश नमों। जय दीन हितो मम दीन पनो, करि दूरी प्रभू पद दे अपनो।। जय कालिमा लोक तनी सगरी । तसु नाशन को तुम मेघ-झरी । जय दीन हितो मम दीन पनो, करि दूरी प्रभू पद दे अपनो।। जय काल वृकोदर नाशक हो मत जैन महान प्रकाशक हो । जय दीन हितो मम दीन पनो, करि दूरी प्रभू पद दे अपनो।। घनश्याम जसा तन श्याम लहो । घननाद बरोबर नाद लहो ||
जय दीन हितो मम दीन पनो, करि दूरी प्रभू पद दे अपनो।। जय लोक पितामह लोक दही । पितु मात घरै कुलचन्द सही जय दीन हितो मम दीन पनो, करि दूरी प्रभू पद दे अपनो।। तुम सोचत सोच न होत कदा। जय पूरित आनंदजाल सदा।। जय दीन हितो मम दीन पनो, करि दूरी प्रभू पद दे अपनो।। जय ज्ञान रतन्न तनीक्षिति हो। तुम राखत दसन की मिति हो । जय दीन हितो मम दीन पनो, करि दूरी प्रभू पद दे अपनो।। जयनाशत हो भव भ्रामरिका । तुम खोल दई शिव - पामरिका।। जय दीन हितो मम दीन पनो, करि दूरी प्रभू पद दे अपनो।।
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