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छन्द
जय मंगलरूप प्रताप धरे, करुणारस पूरित देव खरे। जगजीवन के मनभायक हो, नमिनाथनमों शिवदायक हो ।।
मन माख ने राखत एक रती, परमागम भाषत शुद्धमती । सुख इन्द्रिन केर नशायक हो, नमिनाथ नमों शिवदायक हो ।। लहि केवल तेरस ठाम ठये, अकलंक भये अरु दोष गये। सब ज्ञेय पदारथ ज्ञायक हो, नमिनाथ नमों शिवदायक हो । चतुरानन देखत पाप बिलै, दश चार रत्न नवनिद्धि मिलै। गणनायक के प्रभु नायक हो, नमिनाथ नमों शिवदायक हो। प्रभु मूरति आनन्दरूप बनी, दुति लञ्जित कोटि दिनेश तनी । तुम दीनन के दुखघायक हो, नमिनाथ नमों शिवदायक हो।।
समवस्सृत सार विभूति घनी, पद पूजत इन्द्र, नरेन्द्रगणी। जिनराज सदा सब लायक हो, नमिनाथ नमों शिवदायक हो । प्रभु कान्ति विलोकित मान हनी, दुति चन्द्रसकोच करी अपनी यममारण तीक्षणसायक हो, नमिनाथ नमों शिवदायक हो । । जगमाँहि कुतीरथ उत्थयिता तुमभूरि उधार करे पतिता। प्रभुतीरथ के प्रभुपायक हो, नमिनाथ नमों शिवदायक हो ।।
भव अर्णव पार उतीर्णभये, प्रभुआप तरे पर तार किये। तिहुँलोकन मांहि सहायक हो, नमिनाथ नमों शिवदायक हो ।। अरिहन्त स्वरूप विशल लहो, इषकेतन मारण लोभ दहो । चब घातिय कम्र्म क्षपायक हो, नमिनाथ नमों शिवदायक हो । प्रभु मागधि भाष खिरे सुथरी, मुनि जीवन की सब भ्रांति हरी । चवेदन के प्रभु गायक हो, नमिनाथ नमों शिवदायक हो ।।
सिगकारज करि कृतकृत्य भये, गुणपूरित आनदलेत भये। भट मोह की चोट बचायक हो, नमिनाथ नमों शिवदायक हो ।
इकनाथ बिना सिगरी कछुना, तिहितें शरण गहिये अधुना।
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