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देव धरी छविह मारकी मारनी, रोग शोक व्यथा भव व्यथा टारनी।। पाद राजीव जो जीवरा जी धरे। सो मिजाजी महामोह माजी करे।। देव धरी छविह मारकी मारनी, रोग शोक व्यथा भव व्यथा टारनी।। जे जना आन तेरी सदा ही कीरें। ते शिताबी भली मुक्ति वामा वरें।। देव धरी छविह मारकी मारनी, रोग शोक व्यथा भव व्यथा टारनी।।
और झठी सभी बात तेरे बिना। रोज जापे महा जो महा सो गिना।। देव धरी छविह मारकी मारनी, रोग शोक व्यथा भव व्यथा टारनी।। मन्दभागी न जाने तिहारी ना कथा। वर्ण वीवर्ण आंधी लखे ना यथा। देव धारी छविह मारकी मारनी। रोग शोक व्यथा भवव्यथा टारनी।।
छन्द इह जयमाला मुनिसुव्रत की, जो भवि पढ़ त्रिकाल। द्वै निरद्वन्द्व बन्ध सब तजि के, जागे ताकर भला।। पराधीन नहिं होय कदाचित, पावे आनंद जाल। तजि जग भवन भवन सिद्धनको, सो न परसेहाल।। ओं ह्री श्री मुनिसुव्रतनाथ जिनेन्द्राय सर्वसुखप्राप्तये पूर्णार्घ्यम्।
दोहा हे करुणानिधि शर्मनिधि, मुनिसुव्रत व्रत सीव। तो प्रसाद भवि जीव सब, फूलो फलो सदीव।
ओं ह्रीं श्री मुनिसुव्रतनाथजिनेन्द्राय नमः।
(इस मंत्र की जाप्य देना)
॥ इत्याशीर्वादः पुष्पांजलि क्षिपामि ॥
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