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जय शुक्र शतक्रतु सेव सदा, कुरु कुन्थु जिनाधिप कर्म अदा।।
प्रभु नाम रहें जिन तुण्डन मा। हैं पावन वे सब तुण्डन मा।। जय शुक्र शतक्रतु सेव सदा, कुरु कुन्थु जिनाधिप कर्म अदा।। तुम नाम सहाय हमें कलिमा। नहिं दूसर देख परे कलिमा।। जय शुक्र शतक्रतु सेव सदा, कुरु कुन्थु जिनाधिप कर्म अदा।। कमी न कछू प्रभु तो बलमा। जय हो जय हो सब के बलमा।। जय शक्र शत-क्रतु सेव सदा। कुरु कुन्थु जिनाधिप कर्म अदा।
घत्ता मालती छन्द कुन्थु तनी वर या जयमाल, भवाब्धि तनी तरनी जग गावे। यो जन आस तजे जग की, चढिया पर सो शिवलोक मँझावे।
पावे चैन अनन्त तहां, मनरंग अनंग की रीति गमावे। को कवि भू पर सिद्ध इसो, जहँ के सुख की कथनी कथि पावे। ओं ह्री श्री कुन्थुनाथजिनेन्द्राय सर्वसुखप्राप्तये पूर्णार्घ्यम्।
सोरठा कुन्थुनाथ भगवान, जे भवबाधा में पड़े। तिन सबको कल्यान, करो अपनी ओर लखिं।
ओं ह्रीं श्री कुन्थुनाथजिनेन्द्राय नमः।
(इस मंत्र की जाप्य देना)
॥ इत्याशीर्वादः पुष्पांजलि क्षिपामि ।।
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